ख़सारे पर ख़सारे का बजट तय्यार होता है । मईशत की तरक़्क़ी का मगर प्रचार होता है
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ख़सारे पर ख़सारे का बजट तय्यार होता है ।
मईशत की तरक़्क़ी का मगर प्रचार होता है ।
तिजारत जिस तरह बाज़ार में करता है पंसारी ।
अदब में भी वही दिन रात कारोबार होता है ।
अगर मरने की ठानी है तो क्या सोचा है ये तुम ने ।
गिरानी में कफ़न मिलना बहुत दुश्वार होता है
मियाँ जाते तो हो सर पर लिए फ़रियाद की गठरी ।।
पता भी है तुम्हें थाने में थानेदार होता है ।
गिले शिकवे से क्या हासिल कि दौर-ए-बे-उसूली में ।
जो चलता है उसूलों पर ज़लील-ओ-ख़्वार होता है ।
निगाहों में जो मंज़र हो वही सब कुछ नहीं होता ।
बहुत कुछ और भी प्यारे पस-ए-दीवार होता है ।
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